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Word Of The Week
Iridescent
Life is iridescent, reflecting a spectrum of ever-changing, vibrant experiences.


बहुत कुछ था
बुरी कुछ बात थी अच्छा बहुत कुछ था, अगर तुम सुन सको कहना बहुत कुछ था। करें हम दिल-लगी किससे ज़माने में, हँसी में अब उन्हें चुभता बहुत कुछ था। यक़ीनन क़ाबिल-ए-तहरीर हम ना थें, लिखी हर बात को समझा बहुत कुछ था। मिलाते अब नहीं वो भी नज़र हमसे, निगाहों को गिला-शिकवा बहुत कुछ था। लगे अनजान आईने में यह सूरत, वहाँ मुझमें कभी मुझ-सा बहुत कुछ था। तड़पता है दरख़्त-ए-दिल ख़िज़ाँ में यूँ, गँवाया बेवजह अपना बहुत कुछ था। मिलाओ हाँ में हाँ तो नेक मानेंगे, ख़िलाफ़-ए-राय में चुभता बहुत कुछ था।

Mrityunjay Kashyap
Oct 261 min read


बदल जाएगा
दर्द सीने से कुछ यूँ निकल जाएगा, बहते अश्कों से अंगार जल जाएगा। बा-ख़बर हो के भी तू रहा बेअसर, बेकसी देख पत्थर पिघल जाएगा। आज कर लूँ...

Mrityunjay Kashyap
Aug 301 min read


और बाक़ी है
ग़म की बरसात और बाक़ी है, इक मुलाक़ात और बाक़ी है। बन चुकी दास्ताँ-ए-दिल पत्थर, फ़िर भी जज़्बात और बाक़ी है। कुछ सुना तुम करो सुनूँ मैं...

Mrityunjay Kashyap
Oct 25, 20241 min read


याद है
आजकल यूँ सामने नज़रें चुराना याद है, क्या तुझे एहसान मेरा भूल जाना याद है। दिल लगाने से नए नातों को अब तौबा किया, बेवफ़ा होता हुआ रिश्ता...

Mrityunjay Kashyap
Oct 16, 20241 min read


हाल-ए-दिल: 1
दोस्ती की सारी कहावतें अब झूठी लगती हैं, यह कम्बख़त दुनिया मुझसे रूठी लगती है, यारा! बाकी सब को आज़मा लिया है मैंने, यक़ीनन इक तेरी बात...

Mrityunjay Kashyap
Sep 17, 20241 min read


शिकायत के लिए
क्यों चाह ना हो तेरी सूरत के लिए, तू है ज़रूरी दिल की सेहत के लिए। हर बात यूँ मुझसे कहा ना तुम करो, अच्छा नहीं ये मेरी आदत के लिए। इस खेल...

Mrityunjay Kashyap
Jun 14, 20241 min read


Summertime Nightingale
Here nightingale is that comfort person each on us deserves, where we can go to in our pain and problems.

Priyanshu Raj
May 24, 20241 min read


Binary Choice
Happiness is a binary choice, a poem about hope. Under the aegis of Summer Ale presenting you Poem 1

Priyanshu Raj
May 19, 20242 min read


और मैं हूँ
मेरा भँवरा सा मन है और मैं हूँ, तेरा गुल सा बदन है और मैं हूँ। सितारों से भरा तेरा समाँ है, क़मर सूना सजन है और मैं हूँ। सुबह की शाम होगी...

Mrityunjay Kashyap
Apr 8, 20241 min read


मुझे ग़म नहीं
क़ाबिल-ए-ख़्वाहिश-ओ-आरज़ू हम नहीं, यह चकोर-ओ-मह-ए-नौ सा आलम नहीं। मुझ पे एहसान बाक़ी रहेगा तेरा, वक़्त ज़ख़्म-ए-जुबाँ का है मरहम नहीं।...

Mrityunjay Kashyap
Apr 1, 20241 min read


बंद आँखें तो इक बहाना हैं
नाम से क्यों वुजूद पाना है, मंजिल-ए-कब्र ही तो जाना है। लिख कलाम-ओ-ग़ज़ल उसूल-ए-ग़म, इस ख़ुशी का कहाँ ठिकाना है। मैं हुजूम-ए-मलाल में...

Mrityunjay Kashyap
Mar 24, 20241 min read


उसी की फ़ज़ल है
तशरीफ़ लाएं थे कि इबादत-ए-सूरत-ओ-सीरत करने का पल है, अल्फ़ाज़-ए-हम्द तो जुबां भूल ही गए जो दीदार-ए-रेशा-ए-आंचल है। दरख़्तों को...

Mrityunjay Kashyap
Feb 1, 20241 min read
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