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Word Of The Week
Iridescent
Life is iridescent, reflecting a spectrum of ever-changing, vibrant experiences.


बहुत कुछ था
बुरी कुछ बात थी अच्छा बहुत कुछ था, अगर तुम सुन सको कहना बहुत कुछ था। करें हम दिल-लगी किससे ज़माने में, हँसी में अब उन्हें चुभता बहुत कुछ था। यक़ीनन क़ाबिल-ए-तहरीर हम ना थें, लिखी हर बात को समझा बहुत कुछ था। मिलाते अब नहीं वो भी नज़र हमसे, निगाहों को गिला-शिकवा बहुत कुछ था। लगे अनजान आईने में यह सूरत, वहाँ मुझमें कभी मुझ-सा बहुत कुछ था। तड़पता है दरख़्त-ए-दिल ख़िज़ाँ में यूँ, गँवाया बेवजह अपना बहुत कुछ था। मिलाओ हाँ में हाँ तो नेक मानेंगे, ख़िलाफ़-ए-राय में चुभता बहुत कुछ था।

Mrityunjay Kashyap
Oct 261 min read


Pages of Lies
Dear Diary, Black and white are two extremes. You are neither of them, it seems. Nonetheless, I like the colour grey. For black and white – they never stay. You're lucky to have a magnetic flip. Lest, like memories, your pages slip. And a ribbon to mark the last place, Unlike promises lost, leaving no trace! You must cherish your patient pages. –they weigh truth with even gauges. The ink might have stained your skin, But it helps serve the role you are in. Oh! I forgot to inf

Mrityunjay Kashyap
Oct 232 min read


बदल जाएगा
दर्द सीने से कुछ यूँ निकल जाएगा, बहते अश्कों से अंगार जल जाएगा। बा-ख़बर हो के भी तू रहा बेअसर, बेकसी देख पत्थर पिघल जाएगा। आज कर लूँ...

Mrityunjay Kashyap
Aug 301 min read


असित
मेरी आवश्यकता के अनुकूल, क्यों खिलेंगे पतझड़ में फूल? क्या करने को मेरी इच्छापूर्ति, बोल उठेगी मौन यह मूर्ति? अपनी कठोरता त्याग कुलिश,...

Mrityunjay Kashyap
Mar 261 min read


अग्नि की माया
मृग नयनी वो आयत लोचन, कोमल सा उसका नन्हा तन। मधुर बोली संग काले केश, छवि में बसी कोई सुंदरता विशेष। दस वर्ष में ज्ञान अद्भुत, अग्निजा...

Ritisha
Feb 62 min read


आहिस्ता आहिस्ता
तसव्वुर का नशा करता असर आहिस्ता आहिस्ता, हुए आग़ोश में हम बेख़बर आहिस्ता आहिस्ता। बसाया था जो हम ने जोड़ कर आहिस्ता आहिस्ता, उजड़ता जा...

Mrityunjay Kashyap
Jan 241 min read


मंज़िल कहूँ
हर शाम तेरे साथ मैं महफ़िल कहूँ, तेरे बिना ये रात मैं मुश्किल कहूँ। कहता नहीं तेरा गिला-शिकवा कभी, इस बेवफ़ा दिल की ज़बाँ बुज़दिल कहूँ।...

Mrityunjay Kashyap
Jan 201 min read


और बाक़ी है
ग़म की बरसात और बाक़ी है, इक मुलाक़ात और बाक़ी है। बन चुकी दास्ताँ-ए-दिल पत्थर, फ़िर भी जज़्बात और बाक़ी है। कुछ सुना तुम करो सुनूँ मैं...

Mrityunjay Kashyap
Oct 25, 20241 min read


याद है
आजकल यूँ सामने नज़रें चुराना याद है, क्या तुझे एहसान मेरा भूल जाना याद है। दिल लगाने से नए नातों को अब तौबा किया, बेवफ़ा होता हुआ रिश्ता...

Mrityunjay Kashyap
Oct 16, 20241 min read


हाल-ए-दिल: 1
दोस्ती की सारी कहावतें अब झूठी लगती हैं, यह कम्बख़त दुनिया मुझसे रूठी लगती है, यारा! बाकी सब को आज़मा लिया है मैंने, यक़ीनन इक तेरी बात...

Mrityunjay Kashyap
Sep 17, 20241 min read


आँचल
सब सामर्थ्य सबला तेरे करतल, शक्ति स्वरूपा तू आदि प्रबल, लौकिक रूप अलौकिक शृंगार, सौन्दर्य सिरमौर हो ये आंचल! जब शिशु नयन बहते अश्रुजल,...

Mrityunjay Kashyap
Aug 19, 20241 min read


मन में– 4. प्रतिकार
वंचना बीज है प्रतिकार का, रोपती वृक्ष अनेक विकार का। स्मृति-पट के घांव पर लेप सा- मिथ्या हर्ष हेतु यह क्षेप, हा! प्रतिकार कदापि नहीं...

Mrityunjay Kashyap
Jul 26, 20243 min read


शिकायत के लिए
क्यों चाह ना हो तेरी सूरत के लिए, तू है ज़रूरी दिल की सेहत के लिए। हर बात यूँ मुझसे कहा ना तुम करो, अच्छा नहीं ये मेरी आदत के लिए। इस खेल...

Mrityunjay Kashyap
Jun 14, 20241 min read


और मैं हूँ
मेरा भँवरा सा मन है और मैं हूँ, तेरा गुल सा बदन है और मैं हूँ। सितारों से भरा तेरा समाँ है, क़मर सूना सजन है और मैं हूँ। सुबह की शाम होगी...

Mrityunjay Kashyap
Apr 8, 20241 min read


मुझे ग़म नहीं
क़ाबिल-ए-ख़्वाहिश-ओ-आरज़ू हम नहीं, यह चकोर-ओ-मह-ए-नौ सा आलम नहीं। मुझ पे एहसान बाक़ी रहेगा तेरा, वक़्त ज़ख़्म-ए-जुबाँ का है मरहम नहीं।...

Mrityunjay Kashyap
Apr 1, 20241 min read


बंद आँखें तो इक बहाना हैं
नाम से क्यों वुजूद पाना है, मंजिल-ए-कब्र ही तो जाना है। लिख कलाम-ओ-ग़ज़ल उसूल-ए-ग़म, इस ख़ुशी का कहाँ ठिकाना है। मैं हुजूम-ए-मलाल में...

Mrityunjay Kashyap
Mar 24, 20241 min read


दिल बेज़ार होगा
किस भरम में ख़ुश हुए थे हुस्न का दीदार होगा, ख़्वाब जिसका राज़, अनक़ा का कहीं इज़हार होगा! भूल कर भी चैन ना हो वो ख़याल-ए-दिल तेरा है,...

Mrityunjay Kashyap
Mar 22, 20241 min read


अश'आर जारी है
मेरा ग़म-नाक वक़्त-ए-इम्तिहाँ-ए-अस्ल जारी है, मना तू कामयाबी, आबरू जो तेरी प्यारी है। मुरीद-ए-हुक्म था मैं दूद आतिश का उठा जो हो, बुझी...

Mrityunjay Kashyap
Mar 3, 20241 min read


पौरुष
पौरुष का प्रबल प्रदर्शन होनहार है, जब काल का पांचजन्य करेगा नाद, जो सृजन माया का अधिकार नहीं, उससे क्यों किया आमंत्रित विवाद। जिसके अधीन...

Mrityunjay Kashyap
Feb 2, 20241 min read


उसी की फ़ज़ल है
तशरीफ़ लाएं थे कि इबादत-ए-सूरत-ओ-सीरत करने का पल है, अल्फ़ाज़-ए-हम्द तो जुबां भूल ही गए जो दीदार-ए-रेशा-ए-आंचल है। दरख़्तों को...

Mrityunjay Kashyap
Feb 1, 20241 min read
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