सब घाव समय भरता है
- Mayank Kumar
- Jul 31, 2023
- 3 min read
कुछ समय पहले मैं एक बूढ़े व्यक्ति से मिला जिसकी अपने बेटे के साथ लड़ाई हो गयी थी। हालाँकि उनके बेटे ने उन्हें जो कहा या उनके साथ जो किया, उससे उन्हें बहुत दुख हुआ, लेकिन इस बात को लेकर वो रो नहीं रहे थे और न ही परेशान थे। कुछ बेहतर होने की उम्मीद में उन्होंने मुझसे बस इतना ही कहा "कोई बात नहीं बेटा समय सब घाव भर देता है" यह पंक्ति मेरे साथ जुड़ गयी और मैंने यह कविता लिखी। आशा है कि आप सभी को पसंद आएगी।
जब टीस हृदय का दर्द बन जाए
खुल जाए पातक के द्वार,
जब सहनशीलता भी मर जाए
उठ जाए पीड़ा का ज्वार l
जब नयन पिरोता है मोती
जो बन बह जाए अश्रु की धार,
समय उस कृतांत का डंडा
जिस अक्ष पे चलता है संसार ll
समय जो मानव जीवन घट पर
रोज़ रंगोली गढ़ता है,
चाहे वो राजा, रंक, सिपाही
काल की सूली चढ़ता है l
तो क्यों मनुज काल की वेदी पे
रह खड़ा डरता है,
सब घाव समय देता है
सब घाव समय भरता है ll
अब उस कानन का कुछ सोचो
जिसके भीतर बसता इक मधुबन,
जिसकी विमल पीयूष धारा से
चलता था धरा पर जीवन l
जहाँ सरिता बह वेग से
कंचन खचित किरीट की भाँति,
रजत समान विमल वारी से
सबको है जीवन दे जाती l
वृक्ष हरित मणियों समान
खड़े जैसे समर में वीर,
मनु के कल्याण हेतु
फैलाते वो पावन समीर l
पर कभी सूर्यानल की दाह में
वारी को चलना पड़ता है,
समय की अग्नि की गर्मी में
विटप को जलना पड़ता है l
तब सूख जाते हैं सब वृक्ष
प्यास धरा की बढ़ जाती है,
तब भीषिका उत्पन्न हो कानन में
समय की भेट चढ़ जाती है l
जो धरा का शृंगार थी
आज बनी मरु की भूमि,
काल वह अखंड है पहिया
जिसके साथ धरा भी घूमी l
पर मरु पर भी फिर
नव जीवन उत्पन्न होता है,
कही नागफनी, कहीं भुजंग
कही बना छिद्र मूषक सोता है l
काल कठोर महीप भले ही
पर काल दया करता है,
सब घाव समय देता है
सब घाव समय भरता है ll
स्वर्ण पुरुष, वह निशाजयी जो
नभ के आँगन में पलता है,
छोड़ उदायचल के पाँव सवेरे
जब गगन को चलता है l
फैला दीप्ति समूची धरा पे
जीवन ज्योति जलाता है l
कही नीरस, कहीं घनघोर
अपनी अजा दिखाता है l
कभी दिखा प्रकोप ऊषा का
समूचे नगर जला देता है,
कभी छीन खुद की रोशनी को
जीवन का रस चुरा लेता है l
झुका देता शीश उसका
जिसने उठा नेत्र नजर डाली,
जैसे स्वयं कहता हो दिवाकर
"कौन यहा मुझसे शक्तिशाली?"
पर सूर्य भी समय की
कृपाण धार पे चढ़ता है ,
छोड़ अंबर के आनन को
सागर की ओर बढ़ता है l
अंत में दिनकर को भी समय
के पथ पर चलना पड़ता है,
भूल अपनी शक्ति सारी
उसको भी ढलना पड़ता है l
जब सूर्य समय से नहीं झगड़ता
फिर क्यों मानव लड़ता है,
सब घाव समय देता है
सब घाव समय भरता है l
जीवन के आयोजन, संबंध सकल
है काल की प्रत्यंचा के बाण,
सरयू के जल में ले समाधि
श्री राम ने भी त्यागे थे प्राण l
जिनकी बाल लीला अमर थी
हुंकार से रचा था महासमर,
उस गिरधारी को कानन भीतर
चीर गया था व्याध का शर l
गंगापुत्र, अजेय शांतनु सूत देवव्रत अमर
भीष्म प्रतिज्ञा ले जिनने कृतांत को डोलाया था,
गिरा समर में काल ने उनको
शर की शैय्या पे लिटाया था l
काल को चाहे थामो जितना
काल नहीं है थमने वाला,
मानव करे प्रयास अनंत
समय नहीं है उसका प्याला l
अब जीवन है तो जीना है
जीने का प्रयास करो,
भर हर्ष को, झेल व्यथा को
शनै तुम आगे बढ़ो l
दे न्योता शरद को फिर
मधुमास का पत्ता झरता है,
सब घाव समय देता है
सब घाव समय भरता है ll
-मयंक कुमार
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