आहिस्ता आहिस्ता
- Mrityunjay Kashyap
- Jan 24
- 1 min read
तसव्वुर का नशा करता असर आहिस्ता आहिस्ता,
हुए आग़ोश में हम बेख़बर आहिस्ता आहिस्ता।
बसाया था जो हम ने जोड़ कर आहिस्ता आहिस्ता,
उजड़ता जा रहा अपना ये घर आहिस्ता आहिस्ता।
दरख़्त-ए-जिंदगी-ओ-आशनाई सूखता मेरा,
ख़िज़ाँ का वक़्त जाएगा गुज़र आहिस्ता आहिस्ता।
थका हारा मुसाफ़िर ढूँढता है इक ठिकाना अब,
किसी मंज़िल को तो पहुँचे डगर आहिस्ता आहिस्ता।
बरसता है कहाँ तुम्हारा आब-ए-इश्क़ बतलाओ,
ज़रा हम भी तो हो लें तर-ब-तर आहिस्ता आहिस्ता।
लगे लिपटी हुईं ज़ुल्फ़े तेरे चेहरे पे यूँ कैसीं,
घटाओं में छिपे जैसे क़मर आहिस्ता आहिस्ता।
अदा का नूर फैलाओ न इतना कि कहे पलकें,
चमक से धुंधली होती नज़र आहिस्ता आहिस्ता।
शब-ए-वस्ल-ए-सनम यह बीत जाने दो हमारी फिर,
सबेरे ख़्वाब जाएगा बिखर आहिस्ता आहिस्ता।
फ़ना होने नहीं आया यहाँ पर कोई परवाना,
दिया जलता रहा पर रात भर आहिस्ता आहिस्ता।
बहुत नाज़ुक सा है हाल-ए-दिल-ए-'मुतरिब' कि ना पूछो,
लगाओ मरहम-ए-ज़ख़्म-ए-जिगर आहिस्ता आहिस्ता।
हक़ीक़त है यही 'मुतरिब' मिटेगा जो भी है तेरा,
वुजूद आहिस्ता आहिस्ता कदर आहिस्ता आहिस्ता।
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