मंज़िल कहूँ
- Mrityunjay Kashyap
- Jan 20
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हर शाम तेरे साथ मैं महफ़िल कहूँ,
तेरे बिना ये रात मैं मुश्किल कहूँ।
कहता नहीं तेरा गिला-शिकवा कभी,
इस बेवफ़ा दिल की ज़बाँ बुज़दिल कहूँ।
मालूम था मेरा फ़रेबी यार है,
ईमान का कैसे उसे कातिल कहूँ।
मैं किस तरह कुछ भी करु तुमसे बयाँ,
लिक्खा लुग़त का लफ्ज़ हर जाहिल कहूँ।
तकदीर का सब हार मैं फिर खुश हुआ,
पाकर तुझे दुनिया-जहाँ हासिल कहूँ।
ग़म छोड़ जीना चाहता 'मुतरिब' यहाँ,
ज़ीना कहो तुम मैं इसे मंज़िल कहूँ।
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