अग्नि की माया
- Ritisha

- Feb 6
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मृग नयनी वो आयत लोचन,
कोमल सा उसका नन्हा तन।
मधुर बोली संग काले केश,
छवि में बसी कोई सुंदरता विशेष।
दस वर्ष में ज्ञान अद्भुत,
अग्निजा के हिय में प्रेम बहुत।
क्यों न हो दीन घर का अभिशाप,
पर ह्रदय में न एक भी पाप।
भारतवर्ष को कलंक बड़ा,
दरिद्रता का शाप मिला।
हर दूसरे घर में यही सवाल,
पालन करे या जीवन को पार।
अग्निजा की भी चक्रव्यूह वही,
परिवार द्वारा जाएगी ब्याही।
इन बातों का उसे ज्ञान नहीं,
माँ-पिता के भरोसे आँखें मूँद सब मान गई।
21 वर्ष के हिम ने लाखों की उम्मीद लगाई,
बिटिया के भविष्य से सबने यह रकम कम पाई।
पिता ने जोड़े पसीने के पैसे, माँ ने रखी अपनी बाली।
आखिर में घर की सारी उन्होंने कमाई दे डाली।
मनमोहिनी अग्निजा ने लाल जोड़ा अपनाया,
अग्नि से आशीर्वाद लेकर उसने फेरा लगाया।
"हे अग्नि, इस बालिका की रक्षा करना,
नयी जिंदगी में हर पल साथ देना।"
बिटिया के अलविदा से आँखें नम हो गईं,
माँ-पिता अपने कर्मों पे शर्मिंदा होने लगे।
अग्निजा दूसरी ओर, अब भी न समझ पाई,
किन लोगों के साथ यह कहाँ है पहुँच आई।
यह नया मकान न घर लगे,
दोस्त-पड़ोसी न रहें सगे।
अम्बा भी है माँ से अलग,
मैदान-खिलौने, सब कुछ गया है बदल।
यहाँ गलती करना अपराध है,
कटाक्षों में होता वार्तालाप है।
नोटों की कमी अम्बा का गीत है,
माँ-पिता को गालियाँ देने से सबको बहुत प्रीत है।
एक दिन कर के सीमा पार,
अम्बा ने ठहराया अग्निजा को बेकार।
जवान बेटा लाएगा पैसे हजार,
बेहतर लड़कियों का खुला है बाजार।
अग्निजा को मार्ग से हटाना था,
कुछ न कुछ तो प्रपंच लगाना था।
चूल्हे के पास गलती से धक्का जब लगा,
उसका वस्त्र आग की लपटों में लिपटा।
"हे अग्नि मेरी रक्षा करना,
जहाँ भी ले जाना साथ रखना।"
अग्निजा ने जोर आवाज़ लगाई,
फिर वह कहीं नज़र न आई।
क्या अग्नि की पुत्री की रक्षा उन्होंने की?
या अग्निजा हमेशा के लिए हमें छोड़ कर चली गई?
यह ज्ञात नहीं किसी मनुष्य को,
पर यदि सीख सको तो आज तुम भी सीख लो।
अग्निजा तो एक थी ऐसी स्त्री है लाख,
जिनके जीवन में कहीं तुम ही तो नहीं हो श्राप?
हो सके तो खुद को बदल लो,
आज हो सके तो अपनी गलती समझ लो।







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