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जीवन की किताब

एक कोरे कागज़ सा मिला यह जीवन समय की स्याही से भरता जाता है और कुछ अक्षर इतने गहरे होते हैं कि जीवन की किताब के अंतिम पृष्ठ तक अपनी छाप छोड़ जाते हैं। सामान्यतः इन अक्षरों का चयन हमारा मन नहीं बल्कि हमारे कर्म करते हैं। जन्म से लेकर युवावस्था तक की संगत कुछ सपनों को जन्म देती है, उकेरती है उन अक्षरों को, जो जीवन के अंतिम पृष्ठ तक छपने का सामर्थ रखते हैं। ये सपने होते हैं - किसी उद्देश्य की पूर्ति, किसी व्यक्ति के सान्निध्य या किसी कार्य को करते हुए अपने जीवन की अंतिम श्वास को संसार के बंधनों से मुक्त करना। इन सपनों को आँखों में भर लेना हमारे बस में है, उनके पीछे भागा जा सकता है, देखा जा सकता है की हमारे सपनों ने कितनों को पराया कर दिया, लेकिन जो अविकारी है, वो हैं हमारे प्रयत्न का परिणाम।गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं-

"कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।

मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि।।"

( श्रीमद्भगवद्गीता 2.47)


अर्थात- कर्तव्य-कर्म करनेमें ही तेरा अधिकार है, फलोंमें कभी नहीं। अतः तू कर्मफल का हेतु भी मत बन और तेरी अकर्मण्यता में भी आसक्ति न हो। भविष्य के साथ कभी बैठकर बात कीजिए। अनेक अनुभवों में यह अक्सर सुनने को मिलता है कि मेरा मन तो आत्मनिर्भर होने का था, मैं आगे पढ़ना चाहता था, मुझे थोड़ा और समय बिताना था, लेकिन यह सब इच्छा है, वास्तविकता नहीं। अधिकांश लोगों का सत्य यही है कि कुछ सपनों को आँखों में भरकर बचपन की शुरुआत होती है, इन्हें पूरा करने का एक जुनून होता है, युवावस्था में व्यक्ति इनके लिए मेहनत करता है, दिन-रात एक कर देता है, लेकिन एक समय-अवधि के बाद भी जब परिणाम नहीं मिलता, तब जन्म लेता है आत्मसंदेह! उससे बचने पर सामने आती है जिम्मेदारियाँ, जो बेड़ियों की भांति बंधन बन जाती हैं | यही कारण है की दुनिया को बदलने का सपना अंत में परिणामस्वरूप आकांक्षी को ही बदल के रख देता है और बचता है तो सिर्फ एक अप्रत्याशित जीवन , उन प्रयत्नों के किस्सों का पिटारा और अंतिम पृष्ठ का इंतजार। लेकिन हर सपने का अंत ऐसा नहीं होता, कुछ आंखों को तेज सूर्य की उपमा होती है, कैसी भी परिस्थिति का बादल इसे कम नहीं कर सकता। इन वीरों के परिश्रम का परिणाम होती है सफलता और एक व्यक्तित्व जो पच्चीस की आयु में नहीं मरता बल्कि अमर हो जाते हैं, इतिहास के पन्नो में। संसार और समय इन वीरों को हमेशा नमन करता है।

 
 
 

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